प्रतीक्षा - Paro waiting for Devdas' arrival

by devanshukashyap on March 18, 2011, 02:13:58 PM
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devanshukashyap
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तेरी राह निहारें नैना
इस दीये की लौह पे,
बीते मेरा इक इक पल
देख तुझे उजले चमके |

गिनूं साँस चारों पहर मैं,
पलकें बिछाए उस पथ पे,
लगता है जहाँ देख मुझको
मिलूँगी मैं कभी तुझसे |

नाव प्रभात फिर महक उठी है
तेज़ रश्मियाँ भी संग हैं,
चीख ज़ोर से कहें जो मुझसे
“देख तो! वह आया है” !

मचल गयी मैं दौड़ी नीचे
उस चंचल तितली जैसी,
भागें जो कलियों के पीछे
पुष्प रसाल की तलाश में |

इस अतिशुभ दुर्लभ मुहूर्त में
क्रंदन ध्वनियाँ हैं हुईं झँकृत,
कराल काल की रूदित वाणी
अब ना होंगी मन में निर्मित |

हे जलधर, शिवप्रिय मेरे मेघा
भीतर अपने तू पुष्प भर ले,
स्वागत में मेरे प्रियतम के
हर्षित होकर पाती कर दे |

सलोने सुमधुर इस उत्सव पर
भगवती आलय सुसज्जित करूँगी,
सुहागन साक्षी तेरे प्रिय सिंधूर की
लालिमा से व्योम रंजीत कर दूँगी |

लुप्त हो गयी क्यूँ ये रोशनी ?
घटायें हुईं क्यूँ तुम काली ?
राग हुये क्यूँ पुनः भयंकर ?
कहाँ गयी उत्सव की लाली ?

इतः ततः मेरे ये प्रकृति
क्षण भर में हो उठी जीवित,
उसका कटाक्ष मेरे इस भ्रम पर
कर रहा था मुझको पीड़ित |

क्रूरा आँधी अपने कुकरों संग
पहुँची दीये की लौह की ओर,
अथाह वार कर हुई पराजित
सहमी गयी दुर्गति के छोर|

दुष्कर मेघों के शस्त्र वारुणी
हर ना सके मेरे दीये के प्राण,
बरस बरस वो मृत्यु दर पहुँचे
पर गयी ना मेरे व्रत प्रतीक की शान|

अपने कक्ष के द्वार से अब भी
कर रही हूँ मैं, पथ अवलोकन,
बालकपन की उस जुदाई का
अब तक है देवा, मुझे स्मरण|

जन्मों सम इन दिवसों में मैं
सदियों सम, होरों में जीती हूँ,
प्रतिपल दुर्गम प्रतीक्षा में तेरे
आगमन आशा में रहती हूँ |

भेजे तुम्हारे सभी पत्रों का
नियमित पठन मैं करती हूँ,
उन पत्रों में गूँथी सुगंधि से
आलिंगन तुम्हारा करती हूँ |

मटियाली गोधुलि वेला में जब
मंदिरों में गायन होते हैं ,
धर दीया तेरा, मन आलय में अपने
पूजन तेरे ही होते हैं |

सूर्यास्त की अंतिम किरणों पे
जब काली चुनरिया लहराती है,
जडित उसमें सभी रत्नों के संग
आभा तेरी बढ़ जाती है |

आगामी दिवस में तेरे दर्शन की
आस लगाए रहती हूँ,
कर पूजन अपने व्रत प्रतीक की
लौह को देखती रहती हूँ |

निर्दयी है बहुत यह विष वियोग का
हर रहा है ये मेरे प्राण,
आ जाओ तुम इस से पहले
लग जाए मेरे श्वासों पे विराम |

निर्दयी है बहुत यह विष वियोग का
हर रहा है ये मेरे प्राण,
आ जाओ तुम इस से पहले
लग जाए मेरे श्वासों पे विराम |
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