मैं तेरी दीद की उम्मीद ले निकलता हूं

by charanjit chandwal on September 14, 2011, 01:49:06 PM
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charanjit chandwal
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जब जब भी तेरे शहर से गुज़रता हूँ,
मैं तेरी दीद की उम्मीद ले निकलता हूँ.

बहाने ढूंढता है दिल तेरे से मिलने के
तेरी बदनामिओं के डर से मगर डरता हँ

मैं अपने दुश्मनों के हौसलों से वाक़िफ़ हूँ
अगरचे  दोस्तों से मैं ज़रा संभलता हूँ.

ज़ुदा जिस दिन से हुआ तुझ से ए महबूब मेरे
झलक तेरी को ख्वाबों में भी मैं तरसता हूँ.

तेरे दीदार का भूखा हूं इक फ़कीर ‘चंदन’
क्या हुआ शहनशाहों की तरह जो चलता हूँ

            -चंदन


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usha rajesh
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«Reply #1 on: September 14, 2011, 02:06:18 PM »
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जब जब भी तेरे शहर से गुज़रता हूँ,
मैं तेरी दीद की उम्मीद ले निकलता हूँ.
बहाने ढूंढता है दिल तेरे से मिलने के
तेरी बदनामिओं के डर से मगर डरता हँ
मैं अपने दुश्मनों के हौसलों से वाक़िफ़ हूँ
अगरचे  दोस्तों से मैं ज़रा संभलता हूँ.
ज़ुदा जिस दिन से हुआ  तुझ से ए महबूब मेरे
झलक तेरी को ख्वाबों में भी मैं तरसता हूँ.
तेरे दीदार का भूखा हूं इक फ़कीर ‘चंदन’
क्या हुआ शहनशाहों की तरह जो चलता हूँ

            -चंदन




वाह! चरनजीत जी, बहुत खूब! Applause Applause Applause
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ParwaaZ
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«Reply #2 on: September 14, 2011, 02:27:22 PM »
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Charanjit Jee Aadaab!

Kia baat hai janab behad khub kalaam kahi hai aapne..
Sabhi ashaar aik se badhkar aik rahe..

Aapke umdaa khayaaloN ka muzahera kiya hai janab ..
Humari daad O mubarakbad kabul kijiye....

Likhate rahiye... Aate rahiye...
Khush O aabaad rahiye..
Khuda Hafez...
         



जब जब भी तेरे शहर से गुज़रता हूँ,
मैं तेरी दीद की उम्मीद ले निकलता हूँ.

बहाने ढूंढता है दिल तेरे से मिलने के
तेरी बदनामिओं के डर से मगर डरता हँ

मैं अपने दुश्मनों के हौसलों से वाक़िफ़ हूँ
अगरचे  दोस्तों से मैं ज़रा संभलता हूँ.

ज़ुदा जिस दिन से हुआ  तुझ से ए महबूब मेरे
झलक तेरी को ख्वाबों में भी मैं तरसता हूँ.

तेरे दीदार का भूखा हूं इक फ़कीर ‘चंदन’
क्या हुआ शहनशाहों की तरह जो चलता हूँ

            -चंदन



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MANOJ6568
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«Reply #3 on: September 14, 2011, 05:36:13 PM »
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khub
जब जब भी तेरे शहर से गुज़रता हूँ,
मैं तेरी दीद की उम्मीद ले निकलता हूँ.
बहाने ढूंढता है दिल तेरे से मिलने के
तेरी बदनामिओं के डर से मगर डरता हँ
मैं अपने दुश्मनों के हौसलों से वाक़िफ़ हूँ
अगरचे  दोस्तों से मैं ज़रा संभलता हूँ.
ज़ुदा जिस दिन से हुआ  तुझ से ए महबूब मेरे
झलक तेरी को ख्वाबों में भी मैं तरसता हूँ.
तेरे दीदार का भूखा हूं इक फ़कीर ‘चंदन’
क्या हुआ शहनशाहों की तरह जो चलता हूँ

            -चंदन



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Sanjeev kash
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«Reply #4 on: September 15, 2011, 03:35:17 AM »
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जब जब भी तेरे शहर से गुज़रता हूँ,
मैं तेरी दीद की उम्मीद ले निकलता हूँ.
बहाने ढूंढता है दिल तेरे से मिलने के
तेरी बदनामिओं के डर से मगर डरता हँ
मैं अपने दुश्मनों के हौसलों से वाक़िफ़ हूँ
अगरचे  दोस्तों से मैं ज़रा संभलता हूँ.
ज़ुदा जिस दिन से हुआ  तुझ से ए महबूब मेरे
झलक तेरी को ख्वाबों में भी मैं तरसता हूँ.
तेरे दीदार का भूखा हूं इक फ़कीर ‘चंदन’
क्या हुआ शहनशाहों की तरह जो चलता हूँ

            -चंदन




Chsndan Ji Bahut Khoob Likha HAi Aapne

Dil Se Daad................. Applause Applause
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #5 on: September 15, 2011, 06:10:00 AM »
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Bahut khooob,Charanje ji....HASAN
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With a Quick-Reply you can use bulletin board code and smileys as you would in a normal post, but much more conveniently.


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