ग़ज़ल

by R.Pankaj on April 27, 2009, 01:40:05 PM
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R.Pankaj
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बरसेंगी घनघोर घटाएँ कितने दिन,
इस दिल को अब समझाएँ कितने दिन।

कल कल कहते एक ज़माना बीत गया,
देखेंगें हम उनकी अदाएँ कितने दिन।

सपनों की कागज  की किश्ती डूब गई,
उम्मीदों की पतंग उडाएँ कितने दिन।

दर्द का मौसम आया आकर ठहर गया,
झूठी हँसी का सबब छिपाएँ कितने दिन।

उसको हम तक न आना था न आया,
गए वक्त को यार बुलाएँ कितने दिन।

शीशे के घर अक्सर सहमे रहते हैं,
पत्थर को दिल की समझाएँ कितने दिन।

वक्त मशालों वाला इक दिन आना है,
तरसेंगी अब और निगाहें कितने दिन।

हमको है उस पार उतरना सोच लिया,
रोकेंगी यह राह बलाएँ कितने दिन।
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Roja
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«Reply #1 on: April 27, 2009, 03:37:46 PM »
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Bahut khoob  Applause
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Ricky
Yoindian Shayar
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«Reply #2 on: April 27, 2009, 06:43:58 PM »
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Kindly do not post single Ghazal or Poem twice. I just removed duplicate post.


Btw,
Ghazal khoobsurat hai!
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sapana
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«Reply #3 on: April 27, 2009, 08:58:27 PM »
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very nice Pankaj.

sapana
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madhuwesh
Guest
«Reply #4 on: April 27, 2009, 11:35:54 PM »
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bahut acha gazal pesh kiya aap ne r.pankaj ji.very nice.
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Talat
Guest
«Reply #5 on: April 30, 2009, 12:23:07 PM »
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बरसेंगी घनघोर घटाएँ कितने दिन,
इस दिल को अब समझाएँ कितने दिन।

कल कल कहते एक ज़माना बीत गया,
देखेंगें हम उनकी अदाएँ कितने दिन।

सपनों की कागज  की किश्ती डूब गई,
उम्मीदों की पतंग उडाएँ कितने दिन।

दर्द का मौसम आया आकर ठहर गया,
झूठी हँसी का सबब छिपाएँ कितने दिन।

उसको हम तक न आना था न आया,
गए वक्त को यार बुलाएँ कितने दिन।

शीशे के घर अक्सर सहमे रहते हैं,
पत्थर को दिल की समझाएँ कितने दिन।

वक्त मशालों वाला इक दिन आना है,
तरसेंगी अब और निगाहें कितने दिन।

हमको है उस पार उतरना सोच लिया,
रोकेंगी यह राह बलाएँ कितने दिन।


Bohot Khoob Pankaj Ji
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deepzirvi
Guest
«Reply #6 on: August 17, 2009, 03:22:02 AM »
Reply with quote
बडे खामोश रहते हैं अभी हम,
सुना है लोग अब भी बोलते हैं .
बडे दिल से लगाकर दिल यहाँ पर ,
सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं
कभी अमुआ की अमराई पे कोयल ,
कुहू कुहु के गाती गीत थी पर ,
सुबह की शाख पे बैठी कोयल है ,
नगर में गीत कागा छेडते हैं.
धनक खिलती दिखी थी कल जहां पर ,
आज मरघट सा वो पनघट रुआंसा .
जो बुझाया करे थे प्यास कल तक,
आज वोही क्यों प्यासा छोड़ते हैं
वो सागर रूप के हैं होंगे होंगे ,
कमल तो झील का होता सदा है
हमें अपना बनाने के भरोसे ,
दिला कर खुद भरोसा तोड़ते हैं .
किसी मन्दिर की चौखट पर जलेगा ,
जले गा या किसी मरघट पे फिर भी,
रहेगा दीप तो हर हाल दीपक,
जला कर मन-जलाता हैं छोड़ते हैं9815524600
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Sayyid Randeri
Guest
«Reply #7 on: August 30, 2009, 06:18:07 PM »
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Waah... Pankaj ji bohot umda ghazal hai.. bohot achha likha hai aapne, yoindia main aap ka swagat hai...
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Sayyid Randeri
Guest
«Reply #8 on: August 30, 2009, 06:30:10 PM »
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बडे खामोश रहते हैं अभी हम,
सुना है लोग अब भी बोलते हैं .
बडे दिल से लगाकर दिल यहाँ पर ,
सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं
कभी अमुआ की अमराई पे कोयल ,
कुहू कुहु के गाती गीत थी पर ,
सुबह की शाख पे बैठी कोयल है ,
नगर में गीत कागा छेडते हैं.
धनक खिलती दिखी थी कल जहां पर ,
आज मरघट सा वो पनघट रुआंसा .
जो बुझाया करे थे प्यास कल तक,
आज वोही क्यों प्यासा छोड़ते हैं
वो सागर रूप के हैं होंगे होंगे ,
कमल तो झील का होता सदा है
हमें अपना बनाने के भरोसे ,
दिला कर खुद भरोसा तोड़ते हैं .
किसी मन्दिर की चौखट पर जलेगा ,
जले गा या किसी मरघट पे फिर भी,
रहेगा दीप तो हर हाल दीपक,
जला कर मन-जलाता हैं छोड़ते हैं9815524600

Waah... Waah.. Bohot umda  deepzirvi ji.. achha kalaam hai or paish karne ka andaaz bhi anokha paaya..  Applause  Usual Smile

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Pooja
Guest
«Reply #9 on: August 31, 2009, 02:39:00 AM »
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bahoot khoob RP ji
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With a Quick-Reply you can use bulletin board code and smileys as you would in a normal post, but much more conveniently.


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