damini ki akhiri widaai

by dimple singh on January 23, 2013, 03:23:35 AM
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dimple singh
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मेरे अल्फ़ाज़ों में ‘दामिनी की आख़िरी विदाई देश के नाम...
आपके नाम....

आबाद रहना मेरे देश
कि मैंने अपनी रुख़सती की शर्त पर
अपने हिंन्दुस्तान को
शर्मसार होने से बचाने की कोशिश की है

एक अच्छी रुख़सती देना मुझे
कोई रुदन, कोई हाहाकार ना करना
मेरी शवयात्रा में
लोखों बेटियों, मांओं, बहनों, भाइओं
और करोड़ों अंजान कंधों पर सवार होगा मेरा शव

मां........
बताओ ना मुझे याद करोगी ना
मैं..... मैं लड़ी मां.....
अपनी सांस के मर्ज होते आख़िरी छोर तक
मैं लड़ी थी मां....
मगर मेरे जिस्म को औजारों की नकेल ने
ज़मीर तक छलनी कर दिया था
मेरे ज़ख़्म भी मेरे ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश को
पनाह नहीं दे पाए मां......

मगर मां.....
मैं मरी नहीं हूं ना ही ख़मोशी के आले को ओढ़ा है मैंने
बस मौत पर मुझे दया आ गई,
कब से दरवाज़े पर टकटकी लगाए
मेरे इंतज़ार में थी

मां....
मौत को चुना है मैंने
ताकि सोने की चिड़िया कहे जाने वाले
मेरे इस हिंन्दुस्तान के माथे पर
मेरी बदनसीब मौजूदगी का कलंक ना लगे....
इसीलिए मैंने मौत को चुना है मां...


मेरे देश....
अस्पताल में मेरी कानों में आवाज़ आई थी कहीं से
कि पूरा देश मेरी ज़िदगी की दुआं कर रहा है,
कि मेरे नाम की मुहर के बिना
हर किसी के सीने में मेरा दर्द है आज
ये हर तरफ़ से आती हुईं आवाज़ें
ये जुलूस, ये हुज़ूम, ये चीख़,
ये शोर, ये तड़प....
सब मेरी ही तो हैं

अब मैं ...मैं कहां रही
मैं अब पूरा हिंन्दुस्तान बन गई हूं
ए मेरे देश
हज़ारों आवाज़ों का इंकलाब देके जा रही हूं
लोगों की इन गरजती इंसाफ़ की दहाड़ में
मैंने अपने लिए दर्द सुना है
ए मेरे देश मैं जा रही हूं
मगर इस दहाड़ को यूं ही बरक़रार रखना
ताकि कोई और बहन, कोई और बेटी
उन औजारों, उन अत्याचारों का रुदन ना सहे
जिसे सहा मैंने, जिसे जिया मैंने
और अब मर भी रही हूं

मरी थी मैं तब भी
जब उस रात बस की परछाई मैं
मुझे उजाड़ा गया था
उस रात सिर्फ़ मेरी ही रूह छलनी नहीं हुई थी
बल्कि हर लड़की उस रात दामिनी या अमानत बनी थी
उस रात मेरे साथ
देश की हर औरत एक मौत मरी थी.......
मरा था ये अतुल्य भारत,
मरी थी इंसानियत,
मरा थी इज़्ज़त,
मरा था मेरा आंगन, मेरी थी मेरी रूह
मैं तो बाबा के आंगन में फ़िर लौटना चाहती थी
एक आज़ाद चिड़िया की तरह उड़ना चाहती थी
मगर खूंख़ार बाज़ों के नुकीले पंजों ने
मुझे नोच डाला........


मगर अब ये शोर
मेरी ये मुल्क़ बन चुकी आवाजें
अब किसी और बुलबुल को
किसी और चिड़ियां को
कभी यूं मरने नहीं देगी....
मेरे देश
मुझे ऐसी रुख़सती दे दो
कि जहां अब कोई बेटी चीख़े ना
कोई मुल्क़ मरे ना....''''

अलविदा.....
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saahill
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«Reply #1 on: January 23, 2013, 03:51:32 AM »
BOHUT KHUB EK DARD BHARE SACH KO APNE APNE ALFHAZON SE KHUB BAYAAN KIYA ,,,AB WAQT HAI KUCH AISE KADAM UTTHAANE KA DESH LE KANOON KO AISA JURM KARNE WALA SOCHTE HI KAANP JAYE ,,,
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Pooja
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«Reply #2 on: January 23, 2013, 04:19:42 AM »
no words... ankhein numm ho gai... wonderful work dear!!!
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sksaini4
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«Reply #3 on: January 23, 2013, 04:21:04 AM »
bahut sunder
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aqsh
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«Reply #4 on: January 23, 2013, 06:00:15 AM »
Dil ko chhoo gayi.....
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shara63
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«Reply #5 on: January 23, 2013, 09:23:15 AM »
Samajh nahi pa rahi ke aapke shahkaar ki taareef karun ya us badnaseeb ko ashqoN se shradhhanjali dooN ?.... i'm really speechless!!
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.

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«Reply #6 on: January 23, 2013, 10:25:45 AM »
Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause

bahut sundar, bahut bahut khoob Dimple ji....  !!!
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dimple singh
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«Reply #7 on: January 23, 2013, 01:08:28 PM »
Sabhi ka tahe dil se shukriya damini ki chhikh ko mere lafzon ki aah main mahsoos karne ka...
Bs damini k is dard ko mujhe likhne ki sarthmata tab muqarrar hogi jab. Har shakhsh use sirf padhne hadon se bahar aakar use aamjhe aur fir damini ya anamika na ban paaye...
N admin these are my own words.....
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nandbahu
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«Reply #8 on: January 24, 2013, 08:44:38 AM »
bahut khoob
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prashad
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«Reply #9 on: January 25, 2013, 12:23:28 PM »
very nice
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