*** Main Ladungi ***

by Zaif on February 20, 2014, 12:34:28 PM
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Zaif
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मैं लडूंगी - (एक कविता)
(About domestic voilence)
****************************--

कली हूँ एक नाज़ुक-सी, "धरा पे भार" नहीं हूँ मैं।
मैं भी एक इंसाँ हूँ आख़िर गुनाहगार नहीं हूँ मैं।

कब तुम ये समझोगे, किस हाल में होती थी मैं?
दबा कर मुँह तकिये से, रात-भर रोती थी मैं।

आज भी मेरी याद में, वो भेड़िये-से इंसान हैं।
मेरे तन पर अब भी जिनके पंजों के निशान हैं।

उस दिन जो देख लिया था बहता वो लहू मेरा।
आज तक उस दर्द से उभरा नहीं अब्बू मेरा।

आकर कोई देखो क्या हालत हुई है भाई की?
रो-रोकर पत्थर हुईं हैं आँखें मेरी माई की।

जीने दो, कि जीने का अधिकार मुझे भी है।
हाँ अपनी ख़ुदी पर थोड़ा प्यार मुझे भी है।

छींनो न पहचान मेरी, अब और यूँ दुत्कारो मत।
बहुत सह लिया है मैंने, अब मुझे ललकारो मत।

बस बहुत हुआ, अब ज़ुल्म-ओ-सितम मैं क्यूँ झेलूँ?
दुर्गा मेरे अंदर है, काली का मैं रूप न ले लूँ।

मैं घुट रही हूँ सदियों से, मैं छुप रही हूँ सदियों से।
लाख ज़ुल्म के बावजूद में चुप रही हूँ सदियों से।

पर अब भी आग बाक़ी है, आस मरी नहीं मुझमें।
आज हुआ अहसास मुझे, है चिंगारी कहीं मुझमें।

अफ़सोस कि ये चिंगारी उसी दिन बड़ी क्यूँ नहीं?7
हाँ मैं लडूंगी कि मैं अब तक लड़ी क्यूँ नहीं?  

© 'ज़ैफ'
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sksaini4
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«Reply #1 on: February 20, 2014, 01:25:20 PM »
bahut khoob dher saree dad
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Akash Basudev
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«Reply #2 on: February 20, 2014, 02:34:17 PM »
Waah Zaif bhaijaan aapne dil jeet jeet liye is tareh ki rachna likhkar...aurat ka sthaan yun to sabse upar hona chahiye par sabse neeche hain....is tareh ki rachne likhte rahiye ...kudos 2 u ..well done Usual Smile
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ambalika sharma
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«Reply #3 on: February 20, 2014, 02:41:00 PM »
 tearyeyed  nice lines
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Shireen Hakani
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«Reply #4 on: February 20, 2014, 03:28:43 PM »
 Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley

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jeet jainam
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«Reply #5 on: February 20, 2014, 09:19:18 PM »
कली हूँ एक नाज़ुक-सी, "धरा पे भार" नहीं हूँ मैं।
मैं भी एक इंसाँ हूँ आख़िर गुनाहगार नहीं हूँ मैं।

कब तुम ये समझोगे, किस हाल में होती थी मैं?
दबा कर मुँह तकिये से, रात-भर रोती थी मैं।

आज भी मेरी याद में, वो भेड़िये-से इंसान हैं।
मेरे तन पर अब भी जिनके पंजों के निशान हैं।

उस दिन जो देख लिया था बहता वो लहू मेरा।
आज तक उस दर्द से उभरा नहीं अब्बू मेरा।

आकर कोई देखो क्या हालत हुई है भाई की?
रो-रोकर पत्थर हुईं हैं आँखें मेरी माई की।

जीने दो, कि जीने का अधिकार मुझे भी है।
हाँ अपनी ख़ुदी पर थोड़ा प्यार मुझे भी है।

छींनो न पहचान मेरी, अब और यूँ दुत्कारो मत।
बहुत सह लिया है मैंने, अब मुझे ललकारो मत।

बस बहुत हुआ, अब ज़ुल्म-ओ-सितम मैं क्यूँ झेलूँ?
दुर्गा मेरे अंदर है, काली का मैं रूप न ले लूँ।

मैं घुट रही हूँ सदियों से, मैं छुप रही हूँ सदियों से।
लाख ज़ुल्म के बावजूद में चुप रही हूँ सदियों से।

पर अब भी आग बाक़ी है, आस मरी नहीं मुझमें।
आज हुआ अहसास मुझे, है चिंगारी कहीं मुझमें।

अफ़सोस कि ये चिंगारी उसी दिन बड़ी क्यूँ नहीं?7
हाँ मैं लडूंगी कि मैं अब तक लड़ी क्यूँ नहीं

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 kiya baat kiya baat kiya baat sir ji
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F.H.SIDDIQUI
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«Reply #6 on: February 20, 2014, 09:55:49 PM »
Waah zaif sb , Bahut hi khubsurat kalaam hai .
Achha dard pesh kiya hai . Tah e dil s daad
aur mubarakbad.
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RAJAN KONDAL
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«Reply #7 on: February 21, 2014, 02:11:58 AM »
bhoooot khooooooob ......
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #8 on: February 21, 2014, 04:09:33 AM »
बहुत खूब.
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Azeem Azaad
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«Reply #9 on: February 25, 2014, 05:37:41 AM »
Bohat achcha likha hai yunhi Likhte rahiye
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