yun hi maun rahna hai...

by @kaash on February 21, 2009, 05:32:41 PM
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@kaash
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स्वीकार करो या ना स्वीकार करो ये प्रेम की अभिव्यक्ति है
प्रेमी का अकेलापन ही तो प्रेम में बढाता उसकी प्रेमाशक्ति है
अकेलापन रात्री के आगमन से ऐसा सजाता है प्रेमी
निर्विरोध काँटों का आलिंगन भी एक प्रेमाभक्ति है
इन्ही भावों से संतुष्ट वो ख़ुद को और तृप्त अपनी आत्मा को कर पाता है
सदैव लालसा उसकी मिलन की उसके ह्रदय की मूक वाचालता इसी प्रकार करती है
बड़े ही शान्ति से, मौन से रहता है वो
अपनी पीड़ा की वेदना अपने प्रेम से भी छुपाता है वो
प्रतिपल अंधियारे उसे सताए ना, उनके ह्रदय की पीड़ा उनसे बांटता है वो
फिर रात्री का एक पहर ऐसा आता है
जब हर पहर का दर्द उससे हार जाता है
उसकी गोद में सर रखता है और सो जाता है
परन्तु पहर के भाग्य में बदलना है, प्रेमी के नही
रात हो या दिन उसे  विरह वेदना सहन करना है
इस विरह अग्नि में ख़ुद को समर्पित रखना है
पीड़ा अपनी सीमा पार करे फिर भी उसे धीर रहना है
यूँ ही मौन रहना है

यूँ ही मौन रहना है....

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«Reply #1 on: February 21, 2009, 05:39:53 PM »
Waah Bhai Kamaal ka Hai,.
Waise Jab Hindi Mein Likho, To Please English Mein Bhi Likhna, Kyun Ki Yahaan Kuch Log Hain Jinhe Hindi Nahi Aati,.

And NIce One Again,.
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smardia
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«Reply #2 on: February 21, 2009, 06:09:56 PM »

स्वीकार करो या ना स्वीकार करो ये प्रेम की अभिव्यक्ति है
प्रेमी का अकेलापन ही तो प्रेम में बढाता उसकी प्रेमाशक्ति है
अकेलापन रात्री के आगमन से ऐसा सजाता है प्रेमी
निर्विरोध काँटों का आलिंगन भी एक प्रेमाभक्ति है
इन्ही भावों से संतुष्ट वो ख़ुद को और तृप्त अपनी आत्मा को कर पाता है
सदैव लालसा उसकी मिलन की उसके ह्रदय की मूक वाचालता इसी प्रकार करती है
बड़े ही शान्ति से, मौन से रहता है वो
अपनी पीड़ा की वेदना अपने प्रेम से भी छुपाता है वो
प्रतिपल अंधियारे उसे सताए ना, उनके ह्रदय की पीड़ा उनसे बांटता है वो
फिर रात्री का एक पहर ऐसा आता है
जब हर पहर का दर्द उससे हार जाता है
उसकी गोद में सर रखता है और सो जाता है
परन्तु पहर के भाग्य में बदलना है, प्रेमी के नही
रात हो या दिन उसे  विरह वेदना सहन करना है
इस विरह अग्नि में ख़ुद को समर्पित रखना है
पीड़ा अपनी सीमा पार करे फिर भी उसे धीर रहना है
यूँ ही मौन रहना है

यूँ ही मौन रहना है....

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