कही छुप जाऊ में इस बुजदिल ज़माने से... ऋषि अग्रवाल

by Rishi Agarwal on January 15, 2013, 08:14:04 AM
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Rishi Agarwal
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कही छुप जाऊ में इस बुजदिल ज़माने से,
डरता हैं दिल, नारी के साथ होती अनहोनी से,
रोज लजित होना पड़ता हैं, मरना पड़ता हैं,
शिकार होती हैं वहिशियो की हवानियत से..

कभी कोख में ही मार दिया जाता हैं,
तो कभी दहेज़ के लोभ में जला दिया जाता हैं,
फिर भी बाज़ नहीं आते आते ये लोग तो
बना कर कर हवास का शिकार,
छोड़ देते हैं उसे लड़ने को ज़माने से..

कब तक ये हवानियत का दौर चलता रहेगा,
कब तक तमाशा बनता रहेगा नारी का,
जिसके आँचल की छाव में सोया करते थे,
बाज़ नहीं आते उसे सरे आम उतारने से..

कब तक हम चुप चाप तमाशा देखेंगे,
कब तक अखबारों में ये खबरे पढेंगे,
होता कितना दुःख हैं ये कब तुम जानोगे,
जब अपनी ही कोई होगी छलनी वहशी पापी हत्यारों से..


रात होती सुनसान, गलिया होती हैं वीरान,
छा रहा चारो तरफ खौफ अंधियारों से,
अब तो कुछ सपथ लो होती रोज की घटनाओ से,
" ऋषि " कब तक बचायेगा वहशी पापी हत्यारो से..
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sksaini4
Ustaad ae Shayari
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«Reply #1 on: January 15, 2013, 08:35:43 AM »
bahut khoobsoorat
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anmolarora
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«Reply #2 on: January 15, 2013, 09:30:03 AM »
very nice
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khujli
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«Reply #3 on: January 15, 2013, 11:52:00 AM »
कही छुप जाऊ में इस बुजदिल ज़माने से,
डरता हैं दिल, नारी के साथ होती अनहोनी से,
रोज लजित होना पड़ता हैं, मरना पड़ता हैं,
शिकार होती हैं वहिशियो की हवानियत से..

कभी कोख में ही मार दिया जाता हैं,
तो कभी दहेज़ के लोभ में जला दिया जाता हैं,
फिर भी बाज़ नहीं आते आते ये लोग तो
बना कर कर हवास का शिकार,
छोड़ देते हैं उसे लड़ने को ज़माने से..

कब तक ये हवानियत का दौर चलता रहेगा,
कब तक तमाशा बनता रहेगा नारी का,
जिसके आँचल की छाव में सोया करते थे,
बाज़ नहीं आते उसे सरे आम उतारने से..

कब तक हम चुप चाप तमाशा देखेंगे,
कब तक अखबारों में ये खबरे पढेंगे,
होता कितना दुःख हैं ये कब तुम जानोगे,
जब अपनी ही कोई होगी छलनी वहशी पापी हत्यारों से..


रात होती सुनसान, गलिया होती हैं वीरान,
छा रहा चारो तरफ खौफ अंधियारों से,
अब तो कुछ सपथ लो होती रोज की घटनाओ से,
" ऋषि " कब तक बचायेगा वहशी पापी हत्यारो से..

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aqsh
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«Reply #4 on: January 15, 2013, 12:58:18 PM »
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bahut khoob
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Iftakhar Ahmad
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«Reply #5 on: January 15, 2013, 02:10:47 PM »
Bahut badhiya Rishi Jee.
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Rishi Agarwal
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«Reply #6 on: January 15, 2013, 06:42:32 PM »
bahut khoobsoorat

Shukriya Sir
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Rishi Agarwal
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«Reply #7 on: August 20, 2013, 05:22:08 PM »
very nice

शुक्रिया अनमोल जी
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Rishi Agarwal
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«Reply #8 on: August 20, 2013, 05:23:05 PM »
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शुक्रिया क़ल्ब जी
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Rishi Agarwal
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«Reply #9 on: August 20, 2013, 05:23:52 PM »
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bahut khoob

शुक्रिया अक्ष जी
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Rishi Agarwal
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«Reply #10 on: August 20, 2013, 05:25:02 PM »
Bahut badhiya Rishi Jee.

शुक्रिया अहमद जी
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