INSPIRATION AND EMOTION

by aarzoo-e-arjun on February 05, 2016, 07:18:14 AM
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*Inspiration*........3 by Roja in Inspirational Stories and real life Incidences.
*Inspiration*.......... 4 by Roja in Inspirational Stories and real life Incidences.
Personal Emotion by sushilbansal in English
LOVE - STRANGE EMOTION by Nishant Gupta in English
Unsaid emotion by Nishant Gupta in Shayri-E-Dard
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«Reply #1 on: February 05, 2016, 08:48:46 PM »
You are most welcome Arju Jee, just walk in and start shooting arrows of your poems stories etc.
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«Reply #2 on: February 06, 2016, 06:04:01 AM »
You are most welcome Arju Jee, just walk in and start shooting arrows of your poems stories etc.


sure sir...

you will sleep under the shade of arrows....
hahahhaha.... here i go.... sambhalo fir pahla vaar..
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«Reply #3 on: February 06, 2016, 06:06:31 AM »
  ( तुम्हें चलना होगा )

ऐ  मुसाफिर तू  मत हो निराश
तू कर्म कर मत हो यूँ उदास
क्यों बैठा है यूँ तुम्हें चलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

परिंदों की तरह क्यों मन है चंचल
झरनों की तरह क्यों दिल में हलचल
नदी की धारा सा तुम्हें संभालना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

 यह जिंदगी है पाषाण तू अदना सा इंसान
बांध कर हिम्मत की मुट्ठी कर ले घमासान
यही सच है राही तुम्हे इसी में पलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

है शूलों का रास्ता और शोलों से वास्ता
ग़मगीन है पानी पीने को और दर्दो का नाश्ता
कस ले अपनी कमर अब इसी में ढलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

देख ! वृक्षों पे नई कोंपले फूटते हुए
यह जीर्ण से पत्ते शाख से टूटते हुए
बदल  गया है युग, तुम्हें भी बदलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

आरज़ू )
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«Reply #4 on: February 06, 2016, 06:09:00 AM »
" मन और मानव "

यह नदी का किनारा और
दूर तक फैले सब्ज़, बेल-बूटे
हवाओ में नमी, भीनी सी खुशबू
फूल कलियाँ शाख से टूटे
मानो दिल को जैसे बहलाती है

पत्थरों से टकराता हुआ ये
चांदी सा चमकीला पानी
कलकल करती इसकी लहरें
और नृतमई इसकी रवानी
बस ऐसे ही कहीं गुजरती जाती है

वादियों में मधुर सा शोर
जो फैला है मेरे चारो ओर
मन को कर रहा है सराबोर
एक अजीब सी राहत का
एहसास करवाती है

पेड़ों पे सजे हुए घोंसले
और अजनबी परिंदों की चहक
ख़ुशी से हवा में झूलते पेड़ पौधे
और हवा में रिसती उनकी महक
एक रुहानगी का तारुफ़ करवाती है

किनारे से चोटी तक फैली हुई
ये चट्टानों की ठोस दीवार
और उनसे गले मिलने को
ये नाज़ुक बेल-बूटे कितने बेकरार
अंततः चोटी तक पहुँच भी जाती है

फिर दूर किसी शिकारे से एक
आवाज़ फ़िज़ा में घुल जाती है
नदी, वन, उपवन को जैसे
एक नशीली तरंग मिल जाती है
जिसमे ये कायनात सिमट सी जाती है

फिर सूरज ढलते ही उसी शिकारे से
फिर से एक आवाज़ आती है
पर वन, उपवन और नदी है शांत
परिंदों की आवाज भी थम जाती है
शायद बिरह का दुःख सुर में पाती है

नदी में अब नहीं हलचल है
पर दिल में मचा एक कोलाहल है
कदम खींच रहे मुझे शहर में
जहाँ घुला है ज़हर इसकी सहर में
दम तोड़ कर शामे रातों में ढल जाती है

दिन के उजाले में तो तराने है
वही रात में सिसक जाने है
शिकन न दिख जाए माथे पर
इस लिए होटों पे मुस्काने है
यहाँ ऐसी ही ज़िंदगी तो जी जाती है

यहाँ के सुबह के सूरज से मेरी
रातें सुलग सी जाती है
और बंधनो की गर्म हवा
चिंगारीयों को और भी भड़काती है
शरीर तो मुर्दा है ही
आत्मा भी मर मर जाती है

आरज़ू-ए-अर्जुन
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«Reply #5 on: February 06, 2016, 06:15:23 AM »
( धूल का फूल )

क्या कीमत है रौशनी की मत बताओ मुझे
अंधेरों में पला हूँ मैं
है कितनी दूर मंजिल का रास्ता जानता हूँ 
सदियों पैदल चला हूँ मैं
क्या मिटाएगी ज़माने की गर्दिश की आग
तपते सूरज की तरह जला हूँ  मैं
निकाल लेंगे अपनी कश्ती को मझधार से
सागर की बूंद-बूंद  में घुल गया हूँ मैं
मत कोशिश कर तोड़ने की मुझे ऐ आंधियो
इसी धुल का फूल बन कर खिल गया हूँ मैं

(आरज़ू)
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«Reply #6 on: February 06, 2016, 06:16:49 AM »
 " मैं काफ़िर हूँ "

मज़हब की इस दुनिया में
सब धर्मों के लोग मिले
मैं अंजाना पहचानू न
ये मजहब और जो लोग मिले
मैं देखूं जहाँ भी ये मौला
तेरा नूर इंसां इंसा में मिले
मैं दीन धर्म को जानूँ न
मैं मजहब को पह्चानूं न
मैं कौन हूँ मौला ये तो बता
तेरे नूर ने सब को रौशन किया
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ

है रंग लहू का लाल मेरा
क्या उनका लहू है लाल नहीं
मैं पहली बार माँ बोला था
वो हिन्दू मुसलमा बोले कहीं
इस पानी को रोक सकेगा कोई
सागर से मिलने जाने को
इस हवा को टॉक सकेगा कोई
सांसो में घुलने जाने को
ये खुशबू सीना तान खड़ी
हर गुलशन ये महकाने को
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ

हम एक मालिक के बन्दे है
इस दीन धर्म से बांटों न तुम
हम इन्सां है इस बगिया के
नफरत की धार से काटो न तुम
ये धर्म ज़हर अब बन बैठा
ये विष का प्याला चाटो न तुम
ये जीवन मिला तो कर्म कमा
यूँ  नफरत को गांठो न तुम
अमन की राह मुश्किल तो नहीं
धर्म की चादर से ढांपो न तुम 
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ

हर इन्सां का है फ़र्ज़ यही
इन्सां इन्सां से प्यार करे
हर धर्म का बंदा भाई है
क्यों भाई भाई से जा लड़े
इस धरती माँ ने है पाला
क्यों आँचल इसका तार करें
मालिक ने बख्शी एक धरा
क्यों टुकड़े इसके हज़ार करें
 इन्सां बनके धरती आये
उसका सजदा सो बार करें 
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ

आरज़ू-ए-अर्जुन
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adil bechain
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«Reply #7 on: February 06, 2016, 06:17:57 AM »
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welcome to Yoindia mr arzoo   aur aap ke sunder   kavitao per meri tarf se .....rau ....haan aap ek post mein ek hi kavitaa likhe.n to behtar hai  Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause Applause
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«Reply #8 on: February 06, 2016, 06:21:27 AM »
 ( सुलगती आरज़ू  )

पाके आबो हवा में खुशनुमा थी  सांसे तेरी
सुनहरे मुस्तकबिल  तलाशती थी आँखे तेरी
थी खुशबू  ही खुशबु  हर कोने  में बिखरी हुई
किसी को हसाती गुदगुदाती  थी बातें  तेरी
किताबों में समेटे थे कितने रंगीन से सपने
हर रोज़ होती थी इनसे मुलाकातें तेरी
वो आखरी बार अम्मी ने  माथे को चूमा होगा
वो  आखरी बार अब्बु ख़ुशी से झूमा होगा
अभी अम्मी तेरे बिखरे कपडे समेटती होगी
अभी अब्बा रास्ते में घर लौटते ही होंगे
क्या खबर थी उन्हें  बंद हो जाएँगी सांसे तेरी
एक खरोच नहीं थी जहाँ, वहाँ आज लगी है गोली
दहशत गर्दो ने खेली है आज तुमसे खून की होली
कभी अम्मी को कभी अब्बा को पुकारा होगा
कभी रहम  भीख चाहती होंगी आँखे तेरी
अंधाधुन्द गोलियां अधखिली कलियों  बरसी
बिखर गए नाज़ुक वो पत्ते खुली रही निगाहें तरसी
देख कर खुदा का दिल भी  ख़ौफ़ खाता होगा
चंद लम्हों में जहन्नुम बना दी दुनिया तेरी
कुछ रह गया था बाकी तो आँखों में इंतज़ार
अब्बा के दिल में चुभते होंगे नश्त्र कई हज़ार
अम्मी ने अबतक अपनी पलकें भी न झपकाई
कितनी सूनी रह गयी है भाईजान की भी कलाई
अभी भी लगता होगा आएगी आहट तेरी
कितना खौफनाक मंज़र था जब तुझको पहचाना होगा
लुट गई है दुनिया उनकी बड़ी मुश्किल से माना होगा
पड़ गई आसमान में दरारें उनके चीखो पुकार से
बिखर गए टुकड़ों में वो भी जाने कई हज़ार से
खून के आंसू पीके उसने बंद की होगी आँखे तेरी
मै पूछता हूँ क्या गुनाह था के वो मुस्कुराते थे
मैं पूछता हूँ क्या कुसूर था के  गुलशन महकाते थे
क्यों छीन ली मुस्कान उनकी तोड़ दिया फिर डाली से
क्या खिला सकता है कोई पूछना ज़रा किसी माली से
दिन होगया है खून से लथपथ, सिसक रही है रातें मेरी
या खुदाया तू रहता  कहीं तो इस ज़मीं पे उतर
है हिम्मत तुझमे तो इन् लाशों को हाथ में पकड़
फिर कहना मेरी आँखों  में देखकर अपनी खुदाई
क्या सदियों तक तुझे सुकून  नींद आई
ग़र नहीं तो मिटा दे किताबों से तमाम बातें तेरी
ग़र नहीं तो मिटा दे किताबों से तमाम बातें तेरी।

( आरज़ू )
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«Reply #9 on: February 06, 2016, 06:22:58 AM »
ख़ामोशी इस कदर न हो के बात कि भी जगह न रहे
दिल में गुबार इतना न हो के ज़ज़बात कि भी जगह न रहे
मोहब्बत में देखना के फासले इतने न बढ़ें
के आखरी मुलाक़ात कि भी जगह न  रहे।   ( आरज़ू )
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«Reply #10 on: February 06, 2016, 06:23:52 AM »
हाथ छूटते ही दिल में कुछ होने लगता है
वो दूर तक दिखता है फिर खोने लगता है
जान निकल जाती है मेरी उस वक़्त क़सम से
जब माथा चूम कर वो जुदा होने लगता है

aarzoo
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«Reply #11 on: February 06, 2016, 06:28:04 AM »
बेखुदी में वक़्त गुजारना ग़वारा नहीं था आरज़ू
पर उसका इंतज़ार करना अब अच्छा लगता है

aarzoo
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«Reply #12 on: February 06, 2016, 12:17:03 PM »
Very very warm welcome arjunji

I want to tell u something... Ki ️aap posting submit poetry pe click karke kare .. Jisse Sab ka dhyan jaa sake or aapki poetry sabke dilo tak pahunch sake.
Gustakhi ke liye mafi chahte hai ..
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«Reply #13 on: February 06, 2016, 12:44:02 PM »
mai try kar raha tha poetry section me.. but ek message flash hota hai you are not allowed...

 happy3
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«Reply #14 on: February 07, 2016, 02:26:11 AM »
  ( तुम्हें चलना होगा )

ऐ  मुसाफिर तू  मत हो निराश
तू कर्म कर मत हो यूँ उदास
क्यों बैठा है यूँ तुम्हें चलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

परिंदों की तरह क्यों मन है चंचल
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नदी की धारा सा तुम्हें संभालना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

 यह जिंदगी है पाषाण तू अदना सा इंसान
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यही सच है राही तुम्हे इसी में पलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

है शूलों का रास्ता और शोलों से वास्ता
ग़मगीन है पानी पीने को और दर्दो का नाश्ता
कस ले अपनी कमर अब इसी में ढलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

देख ! वृक्षों पे नई कोंपले फूटते हुए
यह जीर्ण से पत्ते शाख से टूटते हुए
बदल  गया है युग, तुम्हें भी बदलना होगा
मंजिल है अभी दूर तुम्हे चलना होगा

आरज़ू )
waah waah kyaa baat hai, dheron daad.
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