“मेरी कविता”

by anadh on April 13, 2014, 02:26:28 AM
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anadh
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“मेरी कविता”
सोच का कभी तो समावेश है कविता I
शांत सी ठंडी कभी, आवेश है कविता I
अमिताभ कि चमक से कभी ये तो ओत-प्रोत,
शीतल कभी इतनी, लगे सोमेश है कविता II
मन सी कभी सरपट कहीं, भागी भी है कविता I
सोती सी रुकी है, कभी जागी भी है कविता I
स्थिर विचार हैं, कभी है फैलता विस्तार,
सपनो कि उन उड़ान से आगे भी है कविता II
आज़ाद से कभी तो ख़यालात, है कविता I
ठहरे से रुके से कभी जज्बात, है कविता I
कदम कभी सफलता के सोपान पे धरे है,
बिगड़े हुए से हाँ कभी हालात है कविता II
तेज़ सी कभी तो यूँ रफ़्तार है कविता I
खड़ी हुई कभी तो एक दीवार है कविता I
अल्हड़ सी कभी तो कभी बेबाक सी दिखे,
गम्भीर सा कहीं कोई विचार है कविता II
ठंडी सी मुलायम शरद कि ओस है कविता I
टूटे न गिर के हार के, वो जोश है कविता I
संसार में वो बाँटती फिरती है प्यार बस,
कंधे भी बंद खोले वो आगोश है कविता II
जीवन का गर देखोगे, तो हर रंग है कविता I
जो साथ साथ तुम चलो, तो संग है कविता I
जिस रूप में चाहोगे, हाँ उस रूप में ढल जाए,
जज्बा जो तुम दिखाओ, तो उमंग है कविता II

हैं चंद लोग कहते कि नकली मेरी कविता I
गहराई ना इसमें दिखे छिछली मेरी कविता I
कहते हैं कि दिखता वही जो मन हो छुपा,
ख़ालिस हाँ है, मेरी तरह असली मेरी कविता II
धरती भी है कभी, कभी आकाश है कविता I
साफ़ सी दिखे, कभी आभास है कविता I
अच्छे बुरे कि तर्ज पे न तौलना इसे,
कवी ह्रदय कि सोच अनायास है कविता II
बोल सुरीले कभी, चहके मेरी कविता I
संभालती इंसा को, जो बहके, मेरी कविता I
शब्दों से खेलते कई, दिलों को चन्द रास,
फूलों कि तरह अनवरत महके मेरी कविता II
जमीं पे है चलती, कभी उड़ान है कविता I
मंद सी हवा कभी, तूफ़ान है कविता I
तगमा इसे कुछ भी मिले, परवाह न मुझे,
मेरे लिए तो बस मेरी महान है कविता II

अमिताभ कुमार तिवारी "अनध"

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«Reply #1 on: April 13, 2014, 04:27:01 AM »
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«Reply #2 on: April 13, 2014, 12:29:23 PM »
Waah-waah,,,,,,,kya bat ahai.
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anadh
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«Reply #3 on: April 13, 2014, 12:41:29 PM »
Thanks Usual Smile
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«Reply #4 on: April 13, 2014, 07:24:48 PM »
..bahut achchha..laga..aapki baavnayein..utkrishht hain
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anadh
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«Reply #5 on: April 18, 2014, 08:27:04 PM »
Thanks Deep jee. Just an effort..................
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