कंहा है कविता

by piyush_amrit on February 10, 2013, 04:29:04 PM
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piyush_amrit
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ढूंड रहा हूँ उस कविता को, जो पर्वत वन में छुपी बैठी है ......
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो बूढ़े बाप संग खटिया लेटी है ......

ढूंड रहा हूँ उस कविता को, जंहा पहली बारिश में मिट्टी सुंगंध है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा बहते पसीने में ठण्ड हवा मंद मंद है .....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो चांदनी सवार होके धरती आती है .....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो सावन में मोर बन इतराती है ....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को, प्रेमी जोड़े को जोड़ती है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो परयो संग अपनों को ठगती है ....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा फसल आने से किसान के मन में उमंग है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा सूखे में फांसी जीतती जंग है .....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो मज्जिद ,मंदिर या मैखाने में है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा धुंधला नाम गरीब का अनाज के दाने में है ....

कंहा कंहा ढूंढता फिरू मै पागल " अमृत " दिन रात ......
उतार दिया अपनी कविता मै ढूंढ़कर , जीतनी मेरी औकात ......

पियूष जोशी " अमृत "
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ambalika sharma
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«Reply #1 on: February 10, 2013, 05:29:04 PM »
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piyush apki kavita behad khubsurat hai.
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RAJAN KONDAL
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«Reply #2 on: February 10, 2013, 05:31:12 PM »
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ढूंड रहा हूँ उस कविता को, जो पर्वत वन में छुपी बैठी है ......
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो बूढ़े बाप संग खटिया लेटी है ......

ढूंड रहा हूँ उस कविता को, जंहा पहली बारिश में मिट्टी सुंगंध है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा बहते पसीने में ठण्ड हवा मंद मंद है .....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो चांदनी सवार होके धरती आती है .....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो सावन में मोर बन इतराती है ....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को, प्रेमी जोड़े को जोड़ती है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो परयो संग अपनों को ठगती है ....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा फसल आने से किसान के मन में उमंग है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा सूखे में फांसी जीतती जंग है .....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो मज्जिद ,मंदिर या मैखाने में है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा धुंधला नाम गरीब का अनाज के दाने में है ....

कंहा कंहा ढूंढता फिरू मै पागल " अमृत " दिन रात ......
उतार दिया अपनी कविता मै ढूंढ़कर , जीतनी मेरी औकात ......

पियूष जोशी " अमृत "
Beutifull ji
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vimmi singh
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«Reply #3 on: February 10, 2013, 05:50:25 PM »
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piyush_amrit
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«Reply #4 on: February 11, 2013, 05:50:13 AM »
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dhanyawaaaadddd bhaut bhaut dhanyawaadd
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khujli
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«Reply #5 on: February 11, 2013, 05:55:37 AM »
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ढूंड रहा हूँ उस कविता को, जो पर्वत वन में छुपी बैठी है ......
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो बूढ़े बाप संग खटिया लेटी है ......

ढूंड रहा हूँ उस कविता को, जंहा पहली बारिश में मिट्टी सुंगंध है ....
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ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा फसल आने से किसान के मन में उमंग है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा सूखे में फांसी जीतती जंग है .....

ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जो मज्जिद ,मंदिर या मैखाने में है ....
ढूंड रहा हूँ उस कविता को,जंहा धुंधला नाम गरीब का अनाज के दाने में है ....

कंहा कंहा ढूंढता फिरू मै पागल " अमृत " दिन रात ......
उतार दिया अपनी कविता मै ढूंढ़कर , जीतनी मेरी औकात ......

पियूष जोशी " अमृत "


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aqsh
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«Reply #6 on: February 11, 2013, 07:15:32 AM »
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Beautiful one..
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~Hriday~
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kalam k chalne ko zamaana paagalpan samajhta hai.

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«Reply #7 on: February 11, 2013, 06:51:50 PM »
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nandbahu
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«Reply #8 on: February 12, 2013, 10:28:36 AM »
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prashad
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«Reply #9 on: February 13, 2013, 06:00:10 AM »
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