Sudhir Ashq
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इश्क़ के नाज़ुक, रूमानी एहसास और सामजिक चेतना के अज़ीम शायर शकील बदांयूनी ऐसे गिने-चुने शायरों में थे, जिन्होंने अदब और सिनेमा दोनों में एक जैसी मान्यता और लोकप्रियता हासिल की। उनकी ग़ज़लें उर्दू अदब की कीमती धरोहर हैं, जिनमें से कुछ को बेगम अख्तर ने अपनी आवाज़ से रूहानियत बख्शी हैं। जब उन्होंने अपनी फ़िल्मी पारी शुरू की तो वहां भी उन्हें वही मकबूलियत मिली। 1944 में नौशाद के संगीत निर्देशन में उनकी पहली ही फिल्म 'दर्द' के लिए लिखे उनके गीतों 'अफ़साना लिख रही हूं दिले बेक़रार का' और 'हम दर्द का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे' ने उनके लिए सफलता के दरवाज़े खोल दिए। उनके कालजयी गीतों से सजी कुछ फ़िल्में हैं - दर्द, दुलारी, अंदाज़, उड़न खटोला, शबाब, बैजू बावरा, मेला, अमर, दिल्लगी, कोहिनूर, घराना, आन, दीदार, बाबुल, सन ऑफ इंडिया, मदर इंडिया, मुग़ल-ए-आज़म, चौदवीं का चांद, मेरे महबूब, राम और श्याम, फूल और पत्थर, गहरा दाग, साहब बीबी गुलाम, गंगा जमुना, दूर की आवाज़, घूंघट, बीस साल बाद, दो बदन, पालकी, लीडर, संघर्ष, दिल दिया दर्द लिया, आदमी और बेनज़ीर। यह संयोग है कि हिंदी फिल्मों के कुछ सर्वश्रेष्ठ भजन - मन तरसत हरि दर्शन को आज, भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है, ओ दुनिया के रखवाले, जय रघुनंदन जय सियाराम, मेरी सुन ले अरज गिरधारी - शकील बदायूनी द्वारा ही लिखे गए हैं ! इस अज़ीम शायर की पुण्य-तिथि पर हमारी हार्दिक श्रधांजलि, उनके लिखे फिल्म 'मदर इंडिया' के एक अमर गीत के साथ !
ना मैं भगवान हूं ना मैं शैतान हूं दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इंसान हूं !
मुझमें भलाई भी मुझमें बुराई भी थोड़ा है मैल दिल में थोड़ी सफाई भी थोड़ा सा नेक हूं, थोड़ा बेईमान हूं !
ना कोई राज है ना सर पे ताज़ है फिर भी हमारे दम से दुनिया की लाज है तन का गरीब हूं, मन का धनवान हूं !
जीवन का गीत है सुर में ना ताल में उलझी है सारी दुनिया रोटी के जाल में कैसा अंधेर है, मैं भी हैरान हूं !
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