मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आया।

by suman59 on May 28, 2013, 07:11:18 PM
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suman59
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ख़ुशामद का मेरे होठों पे, अफ़साना नहीं आया।
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आया।

कहीं गिरवी नहीं रक्खा, हुनर अपना कभी मैंने,
इसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।

भले ही मुफ़लिसी के दौर में फ़ाक़े किये मैंने,
मगर मुझको कभी भी हाथ फैलाना नहीं आया।

किसी अवरोध के आगे, कभी घुटने नहीं टेके,
मैं दरिया हूँ मुझे राहों में रुक जाना नहीं आया।

सियासत की घटाएँ तो बरसती हैं समुन्दर में,
उन्हें प्यासी ज़मीं पे प्यार बरसाना नहीं आया।

परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।

अनेकों राहतें बरसीं, हज़ारों बार धरती पर,
ग़रीबी की हथेली पर कोई दाना नहीं आया।

सरे-बाज़ार उसकी आबरू लु्टती रही
मदद के वास्ते लेकिन कभी थाना नहीं आया।


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marhoom bahayaat
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«Reply #1 on: May 28, 2013, 07:14:33 PM »
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ख़ुशामद का मेरे होठों पे, अफ़साना नहीं आया।
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आया।

कहीं गिरवी नहीं रक्खा, हुनर अपना कभी मैंने,
इसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।

भले ही मुफ़लिसी के दौर में फ़ाक़े किये मैंने,
मगर मुझको कभी भी हाथ फैलाना नहीं आया।

किसी अवरोध के आगे, कभी घुटने नहीं टेके,
मैं दरिया हूँ मुझे राहों में रुक जाना नहीं आया।

सियासत की घटाएँ तो बरसती हैं समुन्दर में,
उन्हें प्यासी ज़मीं पे प्यार बरसाना नहीं आया।

परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।

अनेकों राहतें बरसीं, हज़ारों बार धरती पर,
ग़रीबी की हथेली पर कोई दाना नहीं आया।

सरे-बाज़ार उसकी आबरू लु्टती रही
मदद के वास्ते लेकिन कभी थाना नहीं आया।


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gr8888888888888 sharing,ma'am
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Bhupinder Kaur
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«Reply #2 on: May 28, 2013, 07:18:54 PM »
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Bahut Hi Umda Sumanji......Dero Daad ..............
 Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley Clapping Smiley
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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #3 on: May 28, 2013, 07:27:11 PM »
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Bahut Khoob.
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Mohammad Touhid
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«Reply #4 on: May 28, 2013, 07:39:45 PM »
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truly nice sharing... hat's off to the author... Usual Smile
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aqsh
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«Reply #5 on: May 28, 2013, 07:58:43 PM »
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nice sharing suman ji...
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mkv
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«Reply #6 on: May 28, 2013, 08:52:34 PM »
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ख़ुशामद का मेरे होठों पे, अफ़साना नहीं आया।
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आया।

कहीं गिरवी नहीं रक्खा, हुनर अपना कभी मैंने,
इसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।

भले ही मुफ़लिसी के दौर में फ़ाक़े किये मैंने,
मगर मुझको कभी भी हाथ फैलाना नहीं आया।

परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।

Kya tanz hai..poora dil hi nikaal kar rakh diya..

Thanks for sharing this beautiful ghazal.
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Sudhir Ashq
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«Reply #7 on: May 28, 2013, 08:55:50 PM »
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Wah,Wah,Wah Sumanji,
Bahut sunder ghazal share ki hai aapne.Really I love it.
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RAJAN KONDAL
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«Reply #8 on: May 28, 2013, 10:57:54 PM »
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nice
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adil bechain
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«Reply #9 on: May 28, 2013, 11:28:02 PM »
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ख़ुशामद का मेरे होठों पे, अफ़साना नहीं आया।
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आया।

कहीं गिरवी नहीं रक्खा, हुनर अपना कभी मैंने,
इसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।

भले ही मुफ़लिसी के दौर में फ़ाक़े किये मैंने,
मगर मुझको कभी भी हाथ फैलाना नहीं आया।

किसी अवरोध के आगे, कभी घुटने नहीं टेके,
मैं दरिया हूँ मुझे राहों में रुक जाना नहीं आया।

सियासत की घटाएँ तो बरसती हैं समुन्दर में,
उन्हें प्यासी ज़मीं पे प्यार बरसाना नहीं आया।

परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।

अनेकों राहतें बरसीं, हज़ारों बार धरती पर,
ग़रीबी की हथेली पर कोई दाना नहीं आया।

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waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah achchchi sharing hai
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@Kaash
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«Reply #10 on: May 29, 2013, 03:33:46 AM »
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waah,waah! bahut bahut umda!
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BANSI DHAMEJA
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«Reply #11 on: July 16, 2013, 12:41:55 AM »
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suman ji
ek ek line gaur karne layak hai. bahut khoob
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Satish Shukla
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«Reply #12 on: July 19, 2013, 08:33:08 PM »
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Nice sharing Suman59 Ji....shayar ka naam bhi hota to
aur maza aataa...khair...jisne bhi ye kalaam kaha hai
use mubaarakbaad aur aapka bahut shukriya...Raqeeb Lucknowi


परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।

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srishti raj chintak
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«Reply #13 on: July 31, 2013, 02:33:58 PM »
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ख़ुशामद का मेरे होठों पे, अफ़साना नहीं आया।
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आया।

कहीं गिरवी नहीं रक्खा, हुनर अपना कभी मैंने,
इसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।

भले ही मुफ़लिसी के दौर में फ़ाक़े किये मैंने,
मगर मुझको कभी भी हाथ फैलाना नहीं आया।

किसी अवरोध के आगे, कभी घुटने नहीं टेके,
मैं दरिया हूँ मुझे राहों में रुक जाना नहीं आया।

सियासत की घटाएँ तो बरसती हैं समुन्दर में,
उन्हें प्यासी ज़मीं पे प्यार बरसाना नहीं आया।

परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।

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wah wah
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